Book Title: Yantrarajo
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Page 112
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यमराजो म्तरेण भक्तं परिलभ्यते यत् // 16 // मत्स्याद् हिंधा भावफलं ग्रहस्य प्रहीयमानं परिवईमानम् / इदं तदा यच्छति व ग्रहशोयदा भवेकालगत्तगश्च // 17 // पनयोख्खिा सन्धः सकाव्यात् ग्रहस्थ न्यूनाधिकाले एम विधिः कार्यः। कोऽर्थः खेटांमध्यन्तरयोः पाने ते यच्छष तब 2. शिवा हवा भाजलसन्धिमानान्तरेण भज्ञ यत्फलं लभ्यते सत् महख विधा कौयमामवईमानमेवा. हावफलं भवेत् / इदं फलं पहेशस्तदा यच्छति यदा काल. चकमो भवति। গয় বন অমিমন্ত্রী মমত্মান্ধা पाद्यन्तरेखे रसभागजाते धृत्वा कुजे माचि मगेजिते दिः / अंशान् विचिन्हान्तरजाविभज्य पनिविलब्धाश्च पडझनीयाः // 18 // লাক্সনঃ সালমা सध्या मगास्ये निहितऽनुघसम् / प्राच्य कुसर्यलयः स्फुटः स्यात् For Private And Personal Use Only

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