Book Title: Yantrarajo
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्धराजी पुनर्भावचतुष्टयोत्पादनमा / प्रझेशोरायुजि लग्नभागे खमध्यगौ नैधनधर्मभायौ। हितुर्यहोरास्यूशि सप्तमांशे खमध्यगावेव शिवार्कसंख्यौ // 13 // समभागे ताकासिम लम्नशिपथ / 15 रायुजि नवमेकादश राक्सयादमामस्थिते मतिसमध्यगी याम्यरेखापरिमतो कामाधनधर्मभावौ भवतः / तथा सप्तमां तत्स्थितससमलम्बांग हितीयचतुर्थहाराणान्तरणासघि पूर्ववत् खमध्यगावव एकादशहादशभावो स्तः / प्रथैरोभ्यः येषभाषचतुष्टयोत्पादनमा / वस्खादिभावा रसराशियुक्ता निजाबिजात्सप्तमसत्तमाः स्युः। संयोज्य भावहितयं समीप स्थितं तदर्ष विदितं च सन्धिः / 14 // भस्य व्याख्या वखादिभावा अष्टमसक्कादशहादयभाषा रसराशियुला राषिटकमा निजाविनाहावासममाः स्युः भवेयुः यथा अष्टमनवमैकादशहादशभावानां राशिषट्कयोजनात् हादग्यपातनात् शेषा हितीयवतीयपचमषष्ठमावा | भवेयुः। For Private And Personal Use Only

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