Book Title: Yantrarajo
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 122 बन्दराजी दशभिर्भया सचा पगुतादिना समानुलशकोः छाया एवंमचापि यम्। স্বত্ব সাকুলা মাজমা: হায়ালন। सप्ताङ्गलस्य प्रतिहत्य शकोः छायां पतङ्ग 12 विभोच्च शैलैः / खधं फलं सूर्यमितस्य शङ्कोः छायालाद्या गणक प्रदिष्टा // 53 // अथ व्याख्या समाालगनार्या फलज्यातः प्रासा तो हा. दशभिः प्रतित्य सप्तभिर्विभज्यते ततो लब्धं शादयाङ्गस्वपः छायाभवति। उदाहरणम्। सप्ताङ्ग क्षयकोः छायार। 26 हादमिर्गुण्यते जाता 78et. सप्तभिर्भव्यते लब्धं वादमा लयकोः छाया अङ्गलाद्या .12.जायते / एवं सर्वत्राप्यानेतव्यम् / प्रथेष्टोवतशिभ्यो द्वादशाक्षसप्तामछायानयनम् / इटोन्नतांशान्नवतेर्विशोध्य सद्भांशकोष्ठहितयाहीत्या। निज निजं शङ्गभवं च वर्ग तया भजेदाखला प्रभेयम् // 54 // For Private And Personal Use Only

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