Book Title: Yantrarajo
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 128 যালী चन्द्रार्कभुक्त्यन्तरभन्नामेवं लब्धं दिनाय सकलं तिथेः स्युः // 46 // एष्यत्यताते च भजे खपडि-६० ईने चिनिनेन्दुविभुक्तिमतो। दिनादिकं स्यास्किल योगजे च षष्ट्या इते सूर्यशशाकभुक्त्योः // 50 // योगेन रामापहतेन भक्तो लब्धं दिनाां फलमेवमेव / अहे भवेदौदयिक ईरा भवेश मिश्रण सुसंस्कृतं तत् // 51 // एषां व्याख्या निर बजे प्रागपारेखायो स्पष्ट रकशक चन्द्रोधक च निवेश्य कासवते स्थानदयमाझे सगास्यचिन्ह कार्य गणना तु द्युमध्यान्मध्यावरखाबा: षट्कहासादिक्रमेण कार्य चन्द्ररुणाने सति कोऽर्थः सूर्याशे निरक्षभूनोपरि ते सति मकराननं यत्र लगति तदप्रमिताः सूर्याशकाः कथ्यन्ते एवं चन्द्रांश निरषभूजस्थे यत्र मृगास्व' स्यास चन्द्रांथा: तेम्यो रव्यंशकाः पात्यन्त यदिन पन्तति तदा एतान् 36. संयोज्य पात्यन्से बादश. भिमन्यन्ते तल्लद्धा शतप्रतिपदादिगततिथयो भवन्ति। For Private And Personal Use Only

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