Book Title: Yantrarajo
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / 45 नीयते यथा राशिषट्कस्य स्वाहीराचप्रमाणफलज्याकोष्ठकेषु एकपञ्चाशच्छताधः प्राप्तंधुज्याफलं 7558 सदघोन्सरं 215. अनेनान्तरेणांसाध:स्थिनाः कलाः 21 गुमन्ते जाताः 42 / 1050 अधस्तनाङ्गस्य षड्या मागे लब्धाः 17 एते उ. परितनाचे 42 मध्ये योज्यन्ते जाता 58 एताज्याफलाइ 75 / 58 मध्ये योज्यते जातमक्षशेषस्य ाज्याखण्डफलं भागायं 76 | 58 अनयैव रीत्या अक्षांशभ्यः 28 / 28 धुन्या फलं प्रसाध्य तदिदमांशफलं भागाद्य 51 सदअपूर्वानीतं शिफलं स्थानदये संस्थाप्याक्षांथफलमेकत्रपातयित्वा अन्यत्र योजयित्वा चावशिष्टांशींकते क्रमेण भुजहत्तस्य केन्द्रं 35'5830 व्यासश्च 4 0 158130 स्याताम् / अथ भुजहत्तादग्रे स्थितानामुन्नतांयानां केन्द्रव्यासानयनम् / पूर्वोक्ता दक्षशेषात् 151121 षडुब्रतांसा: पात्यन्ते जाताः 14521 तथा क्षांशाः 22938 ततः पूर्वरीत्या घडुव्रतांशामां केन्द्र 28 / 31 व्यास: 3328 एवं क्रियमाणे चतुर्विशत्यु बतायानां पातनाच्छषांशाः 12712.1 अक्षांशाः 438 एभ्यः पूर्वरीत्या साधित केन्द्र 1827 व्यास: 2015 यत्राक्षांशभ्य उवांधा न पतन्ति तत्र युक्तिमाह | स्युरक्षतश्चदधिकोन्नतांशाः / तेभ्योऽक्षपाते विहिते तथैव / For Private And Personal Use Only

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