Book Title: Yantrarajo
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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसरितीकासहितः / 1 च मित्रदिकेन मोलभेदोऽस्तीति तैनान्तरण 16.8 परकातिभागा 23135!* वियोज्यन्ते जाताः 23 / 28352 अतः प्राम्बहोज्यो 1434121 एषा प्रागानीतचापको टिव्यवा 2158.1* गुणिता जाता 4545886 / 5 / 20 अन्त्यज्यया | 260. भला मधापक्रमज्या 1262 / 45 अस्याः प्राखञ्चार्य साधितं 20133 एत एव कान्तिभागा याः / अत्र राशिनय. वर्जितरोहिणीनशनवकस्य तहाणस्य च भिन्नदिन স্বামগ্ৰাছুৰ | মিনমিা ৰঙিলম্ব सौम्या: क्रान्तिभागा: सिद्धाः 15 // 2216 एतवता रोहिणीनक्षचं मध्यरेखासः उत्तरस्यां एतावद्भिर्भागैस्तिष्ठति अनया युक्त्या सर्वेषां नक्षत्राणां क्रान्सिसाधनं कार्यम् / अथ प्रकारान्तरण कान्तरानयमम् / अथ बानीय दाक्रान्सिनक्षचभ्रषकात्ततः। तया शरस्य संयोगो वियोगो वैक्यभेदतः॥४५॥ तस्माज्जीवा इतोस्कष्टकान्तिकोरिययाथ वा / उतभक्रान्तिकोटिज्याभक्ता प्राप्ताङनुश्च यत् // 46 // सदेव कान्तिभागाः स्युः सौम्या याम्या यथाविधि / क्रान्तिसायकयोर्योगाहियोगाछेषतच दिक् // 47 // एषां व्याख्या अध वेति प्रकारान्तरे ग्राग्वहीलं विचार्य For Private And Personal Use Only

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