Book Title: Yantrarajo
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुसूरिकतटीकासहितः / - प्रत्यंगस्थापनार्थ नयत्यंथपर्यन्तं प्रदृश्यते / यथा भचक्रस्य स्थापनार्थमुदाहरणं मेषादि 27 / 48 रस्य विंशता भागे लब्ध 055 / 36 अंशफलं प्रत्वंशयुक्तां 1 / 5 / 1212 / 26 / 485 3 / 42 / 24 भायाति / अथ इष्टशङ्कोः छायाकर्णसाधनम् / क्रमाचतोत्रतांशानां जीवा साध्या कलादिका / नतज्या स्वस्वशङ्कनी विभक्ता चोन्नतज्यया // 67 // अङ्गलाद्यं फलं यत्स्यात्तऊसेयं स्वस्वशकजम् / बिजौवा स्वस्वशङ्कयो छेदेनाता फलश्रुतिः // 6 // अनयोाख्या उदाहरणेनैव नतांशाः 8 उग्रतांशाः 1 नतज्या 3588 / 27 उबतज्या 62 / 5. नतज्यां हादभिः संगुण्य उबतम्यया विभव्य लय द्वादशाङ्गलशङ्की; छायाफनमङ्गलाद्य 68725 कर्णानयने विव्या 360. इदशभि: संगुण्य 42200 उबत ज्यचा 62 / 50 विभच्य लब्ध सप्ताङ्गलशकोः छायाफल्लमङ्गुलादिकः कर्ण: 6832 पुनरपि नवज्यां सप्तभिः संगुण्य सनतज्यया विभज्य लचं सप्ताङ्गलशानीः कायाफलमगुलाधं 400 / * त्रिज्यां सप्तभिः संगुख्य 2520. उन्नतज्यया 62 / 50 अङ्गुलादिक; कर्ण 41. एवं नवाङ्गतयोः कायापलं कर्याच साध्यः / तिग्मांशु सप्ताङ्गसशकुजाता छाया नवत्यन्नतभागकानाम् / चिरन्तनाचार्यवरैः प्रदिष्टा प्रदृश्यते सहणकोपयुक्त्यै // 6 // For Private And Personal Use Only

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