Book Title: Yantrarajo
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नयनम् / मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / 15. 6528 एभ्यः प्राम्बचापं 212 13 इदभव दृकर्मफन्तं रोहिणीनक्षस्व सौम्यायनत्वात्तहायस्थ च याम्यवादुमयार्भेदे धनं खा रोहिणोध्रुव क्षिप्यत जातं कर्मशुद्धं रोहिणीनयमिदं 2 / 2 / 26 / 14 एवं मधेषां नक्षत्राणां हक्कम साध्वम् / / अथ प्रकारान्तरेण दृकर्मानयनम् / पूर्ववत्सचिराशिज्या तच्छरेण इता हृता। ताधनन्द मुभिः०४ लब्ध भागादिकं ततः॥५२॥ इस निरक्षलग्नेन सहिष्णा स्थितराशिना। हृतं खखाग्नि 3.. भिर्भागादिकं हक्कम पूर्ववत्॥५३॥ अनायोख्या पूर्ववदयनं विचार्य नक्षत्रध्रुवारपना स| बिराशिया तलरेश हत्वा अतावनन्दवसुभि 88.4 कि. भज्या नसो या भागादिकं तस्माभिरचलग्न मेषादिनोदय विनायो वसुभानि 278 विद्रनवयमा 288 स्त्रिरदा 323 इत्यादिमा प्रस्तुतनश्चत्रसम्बन्धिलक्षीदितमेषा दिलम्नप्रमानि हते खाग्निभि 30. भले चलब्ध भागादिकमेक टक्कर्मफलं भवति तप्राग्वदभीष्टध्रुव के ऋएं धमं च कार्यम् - चोदाहरणम्।यथा मकरायुत्तरायणे सायनो रोहिणीध्रुवकः 2 / 1 / 33152 गरोऽस्य याम्य: 5.1 अस्य प्राग्वचिराशि भुजमा 1714 / 8 एषा परीण इला जाता 8856126 इयं कताभनन्दवसभि 88.. 4 भक्ता स्तब्ध भागादिकमेव धर्म Anwww For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150