Book Title: World Jain Conference 1995 6th Conference
Author(s): Satish Jain
Publisher: Ahimsa International

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Page 203
________________ कन्नड़ भाषी प्रमुख जैन गणितज्ञ डा० अनुपम जैन सारांश "कन्नड़ भाषा दक्षिण भारत की समृद्धतम् भाषा है एवं इसकी समद्धि में जैन धर्मावलम्बियों का विशिष्ट योगदान है। इसके विकास के प्रारंभिक युग का अधिकांश साहित्य जैनों द्वारा ही रचा गया है। जैन आचार्यों, एवं कवियों ने इस भाषा में मात्र सिद्धांत-ग्रन्थों, कथा-प्रधान ग्रन्थों एवं महाकाव्यों का ही सृजन नहीं किया, अपितु गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण आदि विषयों पर भी महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। प्रस्तुत लेख में इस भाषा में सृजन करने वाले प्रमुख जैन गणितज्ञों एवं उनके द्वारा सृजित गणित विषयक साहित्य का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है।" 10वीं शताब्दी में पंप, पोन्न एवं रन्न सदृश महान् जैन कवि हुए थे। पं. के. भुजबली शास्त्री ने उपलब्ध प्राचीन साहित्य एवं शिलालेखों की सामग्री के आधार पर श्री वर्धदेव, श्री विजय, केशिराज, मल्लिकार्जुन, असग, गुणनन्दि एवं गुणवर्म को 7-10वीं शताब्दी के मध्य का प्रमुख कवि माना है। ये सभी जैन कवि थे। इनकी कृतियां मुख्यतः दो रूपों में मिलती हैं1. सिद्धांत प्रतिपादक 2. तीर्थंकर वृत्तात्मक वस्तुतः कन्नड़ साहित्य की समृद्धि एवं विकास में जैन धर्मावलम्बी जनों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। कन्नड़ जैन वाङ्मय का मूल्यांकन करते हुए "कर्नाटक कवि चरिते" के सम्पादक नरसिंहाचार्य ने लिखा है किः "जैन ही कन्नड़ भाषा के कवि हैं, आज तक की उपलब्ध समस्त प्राचीन एवं श्रेष्ठ कृतियाँ, जैन कवियों की ही हैं। ग्रन्थ-रचना में जैनों के प्राबल्य का काल ही कन्नड़ साहित्य की उन्नत स्थिति का काल मानना होगा। प्राचीन जैन कवि ही कन्नड़ भाषा के सौन्दर्य एवं कांति के विशेष कारणभूत हैं। उन्होंने शुद्ध एवं गंभीर शैली रचना कौशल को उन्नत स्तर पर पहंचाया है। प्रारंभिक कन्नड साहित्य उन्हीं की लेखनी द्वारा लिखा गया है। कन्नड़ साहित्य के अध्ययन के सहायभूत छन्द, अलंकार, व्याकरण, कोश आदि प्रधानतः जैनों के द्वारा ही रचे गये हैं।" मात्र काव्य एवं कथा-प्रधान ग्रन्थ ही नहीं, अपितु गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, भूगोल, खगोल, व्याकरण आदि पर भी जैनाचार्यों एवं विद्वानों द्वारा महत्वपूर्ण साहित्य रचा गया। हम यहां गणित विषयक कतिपय प्रमुख कृतियों एवं लेखकों की चर्चा करेंगे। भारतीय गणित अथवा जैन गणित की चर्चा होने पर आचार्य श्रीधर (799 ई.) तथा आचार्य महावीर (850 ई.) की चर्चा प्रमुखता से होती है। इन दोनों प्रमुख दि. जैन आचार्यों द्वारा गणित जगत् को क्रमशः त्रिशंतिका (पाटीगणित सार) नंवशति (पाटीगणित), बीजगणित (अनुपलब्ध) तथा कुछ अन्य रचनाएं एवं गणितसार संग्रह, क्षेत्रगणित आदि कृतियां दी गई हैं।' ___ राजादित्य : श्री नरसिंहाचार्य के मतानुसार कन्नड़ में गणित शास्त्र लिखने वाले राजादित्य प्रथम कवि हैं। आपने सूत्रों एवं उद्धरणों को बहुत ही ललित पद्यों में अभिव्यक्त करने का सफल प्रयत्न किया है। इन पद्यों से यह स्पष्ट है कि वे केवल गणितशास्त्र के ही मर्मज्ञ नहीं, अपितु एक प्रौढ़ कवि भी थे। इन्होंने गणित से संबंध रखने वाले प्रायः सभी विषयों का अपने ग्रंथ में संग्रह किया है। वर्तमान में विद्वानों को अब तक आपके गणित विषयक 6 ग्रन्थ प्राप्त हो चुके हैं। कर्नाटक प्रान्त के कूडिमन्डलान्तर्गत "पूविन बागे'' आपकी जन्मभूमि थी। आपके पिता का नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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