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मेरा भारत महान
__कैसी सूरत, बदली है इस देश की !!! जहाँ पिछले 45 वर्षों में पश्चिमी व्यवस्थाओं पर आधारित पशु संवर्धन का विज्ञान अपनाकर शोषण, हिंसा व विनाश का वरण करके हमने ऐसी उपलब्धियाँ (!) हासिल की हैं :
1) हर घर में उपलब्ध मुफ्त ताजे दूध, शुद्ध घी और ईंधन की व्यवस्था छिन गई। 2) हर परिवार में 'माता' का सम्मानित स्थान जिस गाय को था, वह अब सिर्फ एक 'डेयरी एनिमल' बनकर रह गई
है, एक व्यापार की वस्तु बनकर रह गई है। 3) पशु-वध जैसा घृणित व विनाशक कार्य अब विधि-संगत बना दिया गया है और उसे व्यापार, व्यवसाय व धंधे
का रूप दे दिया गया है। 4) राज्य-सत्ता स्वयं पशु-वध को प्रोत्साहन देती है और प्रकृति के सुनियोजित चक्र में रुकावट डालती है।
अनुकंपा व करुणा के पाठ सिखाने के बजाय राज्य- सत्ता स्वयं नागरिकों के हृदय में कर हिंसा के भाव दृढ़
करती है। आर्थिक लाचारी/लालच द्वारा लोगों को प्राणियों के वध के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। 6) अंधाधुंध प्राणी-वध द्वारा करोड़ों पशु-पालक, किसान, चमार, मोची बेरोजगार बना दिये गये हैं। 7) पश-संरक्षक अधिनियम तो मानों पश-वध के प्रोत्साहन के लिए ही बने हैं (चाहे नाम संरक्षक अधिनियम हो)!
सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने 1958 के महत्वपूर्ण निर्णय में लिखा है : “एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के पृष्टर पर लिखे अनुसार एक अनुमान है कि प्रतिवर्ष सिर्फ बम्बई, कलकत्ता व मद्रास के शहरों में ही 50,000 उत्तम नस्ल की
गायें व भैंसें उनकी छोटी अवस्था में ही कत्लखाने भेज दी जाती हैं व देश उनको हमेशा के लिए खो देता है।" 9) देश भर में फैले 3000 अधिकृत (!) कत्लखानों द्वारा सरकार स्वयं देश की पशु-रूपी अमूल्य पूंजी का तेजी से
विनाश कर रही है और देश की मूल जनता को शाश्वत आर्थिक गुलामी की ओर ढकेल रही है। 10) पशु को पीटना क्रूरता समझा जाता है और इसका दंड भी दिया जाता है किंतु पशु-वध (जो क्रूरता की चरम सीमा
है) को व्यापार समझकर पुरस्कृत किया जाता है। 11) पशु-वध को प्रोत्साहित किया जाता है और एश-संवर्धन की राह में रुकावटें डाली जाती हैं। 12) दूध-घी की नदियाँ सूख गई हैं, पशुओं के खून व मांस की नदियों में तो बाढ़ आ रही है। 13) डेयरी की गाय (जो व्यापार की चीज है) को हृष्ट-पुष्ट रखा जाता है, और घरों की गाय घास-चारे को तरसती है। 14). वायु-जल व जमीन को प्रदूषित करनेवाले महगें किंतु पोषण-रहित अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता है,
जबकि सस्ते किंतु पौष्टिक अनाज के उत्पादन को नजर-अंदाज किया जाता है। देश की खेती व अर्थव्यवस्था पर असह्य बोझ डालने वाली रासायनिक खाद के उपयोग को प्रोत्साहन मिलता है जबकि सस्ती व देश में ही सुलभ प्राकृतिक खाद के उपयोग में बाधा डाली जाती है।
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वाह रे, मेरे भारत महान ! सौजन्य से : माणकचन्द जैन (लहाडिया) C-2/54 S.D.A. हौजखास, नई दिल्ली 110016
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