Book Title: World Jain Conference 1995 6th Conference
Author(s): Satish Jain
Publisher: Ahimsa International

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Page 207
________________ 1. :: 5,6 :: "संदर्भ स्थल" देखें, सं. (4 अ), पृ. 1-12 कर्नाटक कवि चरिते-प्रस्तावना भाग 1 एवं 2, द्वारा सं. (6-स) पृ. 312 देखें, सं. 1-स एवं द देखें, सं. (4-ब) देखें, सं. (4-स) देखें, सं. (3) प्र. 168 देखें, सं. (4-स) It (Lilavati) was first translated into Kannad by Rajaditya (1191.A.D) S.Srikant Shastri-The Date of Sridharacarya, Jain Antiquary, 13-II (1947) P-13. वैकणतिकारि बसादि-मूडबिद्री-ग्र.सं. 7 द्वारा सं. (4-अ) पृ. 275 जैनमठ कारकल ग्रं. सं. 54, 59, 60 द्वारा सं. (4-अ) पृ.. 299. जैन मठ मूडबिद्री ग्रं.सं. 59, द्वारा सं. (4-1) प-. 169 देखें, सं. (7) पृ. 207 देखें, श्रीभूवलय 8-126, 9-146, 8-66, 8-72 द्वारा सं. (5) देखें, सं. (5) देखें, सं. (4-अ) पृ. 244, 169 देखें, सं. (ब) देखें, सं. (7) व्यक्तिगत पत्राचार दिनांक 12.11.81 देखें, सं.(4अ) पृ. 299, 169 देखें, सं. (1-द) 1. प्राकृत शोध संस्थान, श्रवणबेलगोल (हासन) 2. रमारानी जैन शोध संस्थान, मुडबिद्री (द. कनारा-कर्नाटक) 3. Jain Canonical Research Soc., Bangalore. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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