Book Title: World Jain Conference 1995 6th Conference
Author(s): Satish Jain
Publisher: Ahimsa International

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Page 225
________________ इसका नया नाम 'प्राकृत एवं जैन दर्शन शोध संस्थान' रखा गया है' कनाड़ एवं यू०एस०ए० में ब्राह्मी सोसायटी संस्था कार्यरत है, साथ ही लगभग 40 जैन स्टडी सेन्टर विदेशों में अपनी शैशवावस्था में है, इक्कीसवीं सदी में आशा की जानी चाहिए कि ये सभी अपना वटवृक्षीय रूप बनाकर जैन विद्यालयों में शोध को एक नई गति प्रदान करेंगे। जैन विद्याओं पर शोध कराने वालों और करने वालों में जैन-अजैन का अनुपात लगभग 30 प्रतिशत- 70 प्रतिशत का है। इन सभी का परिचय व उनके शोध कार्य की समीक्षा अगली सदी का चुनौती पूर्ण विषय होगा। इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित और पुरस्कृत किया जाना चाहिए। जैनविद्या के प्रबन्धों एवं उच्चस्तरीय ग्रन्थों को प्रकाशित करने वाली संस्थायें गिनी चुनी हैं। इनमें भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली; पार्श्व विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी; रिसर्च इंस्टीटयूट ऑफ प्राकृत, जैनोलोजी एण्ड अहिंसा, वैशाली (बिहार); एल०डी० इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डोलोजी, अहमदाबाद (गुजरात) आदि के नाम लिये जा सकते हैं। 10 भविष्य में संभव है कोई ऐसी संस्था प्रकाश में आए जो एकल या संयुक्त रूप से जैनविद्या शोध-प्रबन्धों का प्रकाशन करे। अभी तक कुल हुए शोधकार्य का लगभग 20 प्रतिशत ही प्रकाशित है। जैनविद्या-शोध के विकास में 'जैन सिद्धान्त भास्कर', 'अनेकान्त' (नई दिल्ली), 'तुलसीप्रज्ञा' (लाडनूं), 'श्रमण' (वाराणसी), 'प्राकृतविद्या' (दिल्ली), 'जैनविद्या (श्रीमहावीर जी), 'अर्हत्वचन' (इन्दौर), 'शोधादर्श' (लखनऊ), 'जैन जर्नल' (अंग्रेजी). (कलकत्ता), 'तीर्थंकर' (इन्दौर). 'हिंसा वायस (दिल्ली) 'जिनवाणी' (जयपर).11 जिनमंजरी (अंग्रेजी) (कनाड़ा), आदि पत्रिकायें संलग्न हैं। पर जहां तक अपनी अल्पबुद्धि से मैं समझता हूं, इन पत्रिकाओं को वह सम्मान प्राप्त नहीं, जैसा कि इलाहाबाद, कुरुक्षेत्र, वेंकटेश्वर, पंजाब, होशियारपुर आदि विश्वविद्यालयों से प्रकाशित होने वाले जर्नलों को है। अगली सदी में आशा की जानी चाहिए कि कम से कम दो ऐसे जर्नल अवश्य प्रकाशित होंगे जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के होंगे। जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं इस विषय में अग्रणी भूमिका निभा सकता है। गत 2-3 दशकों में जैनविद्या सम्बन्धी विषयों का विविधीकरण हुआ है, 25 विषयों के अन्तर्गत 820) शोध-प्रबन्ध लिखे जा चुके हैं अब तक प्राप्त विषयवार आंकड़े निम्न हैं। यह आंकड़े 20 जुलाई 1994 तक के (1) संस्कृत भाषा एवं साहित्य प्राकृत भाषा एवं साहित्य अपभ्रंश भाषा एवं साहित्य हिन्दी भाषा एवं साहित्य जैन गुजराती/मराठी/राजस्थानी दक्षिण भारतीय भाषायें व्याकरण एवं भाषा विज्ञान जैनागम जैन न्याय/दर्शन जैन पुराण जैन नीति/आचार/धर्म/योग जैन इतिहास/संस्कृति/कला/पुरातत्व जैन-बौद्ध तुलनात्मक अध्ययन जैन एवं वैदिक साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन (9) (10) (11) (12) (13) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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