Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 19
________________ [C] इसके अतिरिक्त संखेश्वर पार्श्वनाथ स्त० गा० ११ का पृ० ६४ में छपा है पर आपने यह यात्रा कब की इसका कोई उल्लेख नहीं । इसके पश्चात् आपने कब कहाँ चातुर्मास किये इसका कोई पता नहीं चलता अब तक जो रचनाएँ मिली हैं वे सं० १७५२ से १७५५ तक की हैं। इसके पश्चात् की कोई संवतोल्लेख वाली रचना नहीं मिलने से ठीक ठीक पता नहीं लगता कि आप कब तक विद्यमान रहे पर दीक्षानंदि पत्र में आपके शिष्य विनयमंदिर की दीक्षा सं० १७६६ ज्येष्ठ वदि ५ को बीकानेर में हुई थी लिखा है उस समय तक आप अवश्य ही विद्यमान थे । इन वर्षों पर किसी ज्ञान पास रही कहीं विशेष प्रकाश में आपने ग्रंथ रचना अवश्य ही की होगी । भंडार या उनकी परम्परा के किसी विद्वान के मिल जाय तो आपकी रचनाओं व जीवनी पर पड़ सकता है। तीन वर्ष जैसे अल्पकाल की विदित होता है कि आप उच्च कोटि के कवि थे बहुतसी रचनाओं का निर्माण किया होगा । प्रकाशित प्रधान रचनाएँ इस प्रकार है। रचनाओं से । एवं और भी इस ग्रन्थ में १ - उत्तमकुमार चरित्र चौपई २ - विहरमान बीसी स्तवन ३ - ११ अंग सज्झाय स० १२ Jain Educationa International -: ढाल ४२ गाथा ८४८ सं० १७५२ फा० सु० ५ गु० पाटण स्त० २० कलश १ सं० १७५४ विजयादशमी राजनगर सं० १७५५ भा० बदी १० राजनगर For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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