Book Title: Vastupal Tejpal no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ (ए) सोल शणगार, विद्याधरी के देवकुमार ॥ पाये ठमके घूघर घमकार, एसी नारी नहीं डूजी संसार ॥ १५ ॥ सासरे सीधावी ते पण बाल, कर्मे रंगापण व्यं काल || पीहर तेमी आव्यो बाप, कुमरी कर्मे वे संताप ॥ १६ ॥ एहवी वातज हुं पण लहुं, नामे कुमरी वाइ ते कहुं । कुखे रत्न बे दी से सही, शासनदेवी एम कहीने गइ ॥ १७ ॥ एम वात करी निद्रा अनुसरे, सराज ते हृदयमां धरे ॥ प्रह उठी यावश्यक यादरे, गुरुचरणे ते वंदन करे ॥ १८ ॥ पोसो पारीने गुरुने नमे, रजनी वात हृदयमां रमे ॥ एणे अवसर बाइ कुमरी जोय, देव पूजी गुरु वंदे सोय ॥ १५ ॥ गुरु निरखे ते कुमरी नार, शीश दलावे वारोवार ॥ सराज मन चमक्यो वली, साधु शीश हलावे कारण कली ॥ २० ॥ विनय करी पूढे सराज, किम शीश दलाच्युं कहो महाराज ॥ श्रति आग्रह जाणी श्रावक तणो, दीगे लान सूरीश्वर घणो ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥इरिन सूरि सुखकरु, बोले अमृतवाण ॥ विधवा कुमरी एह बे, रत्न बे कुखे जाण ॥ १ ॥ वचन वदे For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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