Book Title: Vastupal Tejpal no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 82
________________ ( १ ) ॥ एकवीश सूरिपद थापीयां, पदमोबव मेरु सम कीध रे ॥ २१ ॥ ला० ॥ ६० ॥ ला० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ बे बंधव आलोचता, कहे कीधा धर्म अनेक ॥ वे विमलाच करूं जातरा, एम उपन्यो हृदय विवेक रे ॥ १ ॥ वस्तुपाल कहे तेजपालने, पोख्या पात्र सुपात्र || पूर्व पातक तो टले, जो कीजे शेडुंजे यात्र ॥ २ ॥ मंत्री जाव एहवो दुर्द, जइ पूजुं कषन जिनदेव || संघ बरशुं संचरे, माहणदेवी सारे सेव ॥ ३ ॥ संवत् बार एकाशीए, पहेली यात्रा कीध ॥ पढे संघ लेइ संचरे, ते कहेशुं सघली रिद्ध ॥ ४ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ यावे यावे रूपनो पुत्र, जरत नृप जावशुं ए ॥ ए देशी ॥ सराज नंदन हरखशुं ए, वे बंधव सरखी जोम तो, शेत्रुंजे जातराए आवे आवे मनने को तो ॥ शेत्रुंजे जातराए ॥ १ ॥ पग पग कर्म निकंदता ए, विमलाचल यात्रा जाय तो ॥ शे० ॥ ए यांकणी ॥ सबल संघ सजाइ करी ए, ते कहेतां नावे पार तो ॥ शे० ॥ देश देशना संघ मल्या ए, जंगलीश सहस्स सेजवाल तो ॥ शे० ॥ २ ॥ सातसें संहान वस्तु० ६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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