Book Title: Vastupal Tejpal no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ (५) माता एम कहे जी, सांजलो पुत सपुत ॥ ज्येष्ठ बंधव हता ताहरे जी, लूणिक मालदेव सुत ॥१॥ नरेश्वर तुज समो अवर न कोय, आश पूरो हवे माहरी जी॥ जिनमंदिर आबु होय, नरेश्वर तुज समो अवर न कोय ॥२॥ मंत्रीश्वर लूणिक दुई वरष अष्टनो जी, करतो धर्म विचार ॥ सहगुरु वाणी सुणी करी जी, बज्यो जिनधर्म सार ॥३॥ मं॥ दान शील तप नाव धरे जी, पुण्ये करी पोषे काय॥ चौविध पात्र ते पोखीए जी, देव गुरु गुण गाय ॥४॥ मं० ॥ शीयल सन्नाह अंगे धरे जी, न करे केहनी रे तात ॥ प्रजन। जिनपाये नमे जी, जाणे नव तत्त्वनी वात ॥५॥ मं॥ बह अहम आंबिल करे जी, करे वली पोसह सार ॥ पमिकमणां दो नित्य करे जी, मुख जंपे नवकार ॥६॥मं॥ त्रिकाल पूजा नित्य करे जी, अष्टप्नकारी रे जाण ॥ सत्तरत्नेदी पूजा आदरे जी, जिन पूजे जले मंमाण ॥७॥ मंग॥ जिनमंदिर नीपजावीए जी, एहवो निश्चय कीध ॥ मनह मनोरथ चिंतवेजी, जोहुँ पामुं रिक ॥ ७॥ मं० ॥ आबु गिरिवर में सुण्यो जी, तेत्रीश कोमि देववास ॥ नेमप्रासाद नीपजावीए जी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110