Book Title: Vastupal Tejpal no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 102
________________ ( १०१ ) पशुं ते उपजे ॥ म० ॥ मेरुविजय वदे ए सोय ॥ ला० ॥ ३० ॥ म० ॥ अधिकुं जंतुं में जे कह्युं ॥ म० ॥ ते तो खमजो पंक्तिराय ॥ ला० ॥ मिठामि डुक्क ते दीजं ॥ ० ॥ कविजन अक्षर खाणजो वाय ॥ ला० ॥ ३१ ॥ म० ॥ अनेक कवीश्वर आगे हुआ ॥ म० ॥ ते आगल के मात्र ॥ ला० ॥ महारुं मन में रीऊव्युं ॥ म० ॥ निर्मल कीधुं गात्र ॥ ला० ॥ ३२ ॥ म० ॥ ॥ दोहा ॥ गुणवंतना गुण गावतां, निर्मल कीजे काय ॥ जिनवर वाणी एम वदे, गुणवंतना गुण लेवाय ॥ १ ॥ उत्तम पुरुष वल्ली जे कह्या, अवगुण ढांकी गुण जोय ॥ सुपम सरिखा नर ते वली, चालणी सरिखा के होय ॥ २ ॥ एम दृष्टांत अनेक बे, कहितां नावे पार हलुकर्मी जे जीवमा, ते करे परउपगार ॥ ३ ॥ बडे खंडे धर्मकरणी करी, राख्यां जगमां नाम ॥ प्राग वंश मंत्री हुआ, कीधां उत्तम काम ॥ ४ ॥ सुरगुरु यावी जो कहे, तो हि न पामे पार ॥ कहो कवि केता कहे, वस्तपाल गुण उदार ॥ ५ ॥ तप ग केरो राजी, श्रीविजयदान सूरिराय ॥ पंकित गोपजी गणि रंगवि - जय, कवि मेरुविजय गुण गाय ॥ ६ ॥ संवत् सत्तर एकवीश कहुं, चरित्र रच्युं रसाल ॥ ब खंग कह्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110