Book Title: Vastupal Tejpal no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१७) तप गल मंगन साहसधीर,श्रीविजयदान सूरि बावन वीर ॥ पंमित गोपजी गणि रंगविजय शिष, मेरुविजय पूरो मनह जगीश ॥ ए॥ -
॥दोहा॥ ॥प्रथम खंम खांते कह्यो, पामी हरख अपार ॥ पंमित जन मुख में सुणी, प्रबंध रच्यो सुखकार॥१॥ सहगुरुवचने त्यां आवीया, धवलका नगर मकार ॥ नाग्यउदय हवे त्यां हुवे, सुणजो ते विस्तार ॥२॥ माय बाप वृत्तांत कह्यो, लह्यो ते में लवलेश ॥ हवे वस्तग तेजपाल तणुं, चरित्र कहुं सुविशेष ॥३॥ श्रीगुरु चरणकमल नमी, समरी सरखती माय ॥ श्रीविजयराज सूरिराजे वली, वस्तुपाल रास कहे. वाय ॥४॥ खंम खंम नवनवि वारता, नवनवा नाव नणेश ॥ चित्त धरी सहु सांजलो, पाप सहु हणेश ॥५॥
॥ढाल ॥ ॥आदित्य जोए रे जीवमा ॥ए देशी॥ वीजो खंग सोहामणो,जनम तणो अधिकार ॥ हवे नर नारी सुख विलसतां, श्रावी उपन्या देवकुमार ॥१॥ सुगुण नर तमे सांजलो, गुण कहुं वस्तुपाल ॥ सांजलतां
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