Book Title: Vastupal Tejpal no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 17
________________ मानकी, मानी मागी मोटी सार ॥ सातमी सखरी शोजती, ए सात पुत्री उदार ॥२२॥ एहण॥दारिद्य घरवासो वसे, सात पुत्रीनो बाप ॥ कीधां कर्म ते जोगवे, पामे मन संताप ॥ २३ ॥ एह ॥ काव्यं ॥ कुग्रामवासः कुनरेंऽसेवा, कुनोजनं क्रोधमुखी च नार्या ॥ कन्याबहुत्वं च दरिता च, षड् जीवलोके नरकावसंति ॥२४॥ ॥दोहा॥ ॥निसाणी नाणे नविराचीए,बंटी खाणुं नहीं सार॥ बाली पूजाणुं ते किस्यु, तिम काफी पुत्री असार ॥१॥ चिंतातुर ते बे जणां,हवे करशुं किस्यो उपाय॥ खीर न खाधी हाथे बली, ए उखाणो साचो थाय ॥२॥श्म करतां दिन केता गया, पुत्र प्रसव्यो लूणिक ताम ॥ मात पिता हरख्यां घj, उबव करे अनिराम ॥३॥ बीजो पुत्र वली त्यां हुई, मालदेव दीधुं नाम ॥ थोमा दिवसमां बेहु जणा, पोहता अमरविमान ॥४॥ कुमरी मूर्ती लुश पमी, रु रुवावे रान ॥ आसक ाशानंग हुश्, हवे जश् पूर्बु गुरु झान ॥५॥ चिंता म कर रे मानिनी, चिंते किमपि न होय ॥ सशुरु पूर्बु वातमी, कहेशे वृत्तांत सोय ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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