Book Title: Vastupal Tejpal no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 24
________________ (५३) ॥दोहा॥ ॥ सकल कला बे बंधव तणे, रंजे नवनवा लोक ॥ धवलकपुर नगरे रमे, जोवा मले जनथोक ॥१॥ विनय करी ते परवस्था,बु बावन वीर ॥ रूपे स्मरदेव हरावी, समरथ साहसधीर ॥२॥ ॥ चोपा ॥ ॥ चतुरपणे ते बोले चंग, पुण्ये करी निज पोषे अंग ॥ एवा कुमारबे अवतस्या, सागर जिम गंजीरे जख्या ॥१॥ पात्र देखीने दानज दीए, गुणी देखीने गुणज लीए ॥ उर्जन देखी प्रीतज हरे,सऊन देखी हियडे ठरे॥२॥ शास्त्र देखी ते करे अर्थ, रणमें पेठे थाय समर्थ ॥ पुरुष तणां जे लक्षण इस्यां, ते सहु कुमर जाणे तिस्यां ॥३॥ एवा वस्तग तेजपालज कडं, एह समो बीजो नव लहुं ॥ मात तात आश पूरे वली, घरनो नार चलावे रली ॥४॥पमाइपोटली करे बेहु बाल, कुमली करतां गयो केतोकाल॥ तावर बायो हृदय नवि धरे, पेटनराइएणी परे करे ॥५॥ श्म करतां वरष अढारे गयां, वस्तुपाल वखत हवे प्रगटे श्हां ॥ अनुपमदेवी परणी नार, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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