Book Title: Vastupal Tejpal no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ त्थर हणे, उ जथथे फल देय ॥४॥ सोनुं वेची स. जन कीया, मोती केरे तोल ॥ ते सजान किम जोमीए, लोकां केरे बोल ॥ ५॥ आसक आशा पूरतो, राश्को करे रुमी वात ॥ बानी वात करे सदा,रूठगे न करे घात ॥ ६॥ एक दिन मैत्री बेजणा, करता वात कबोल ॥ अवसर जाणी मेतो कहे, कुमरीशं करी रंगरोल ॥७॥राश्को वचन वलतुं कहे, अववसर जाणी सांढ पव्हाण ॥ घमीए योजन मूकशे, कुमरी ले जा सुजाण ॥७॥ घमीआ योजन सांढ आपतो, राश्को मित्र अपार ॥ काम करे तुं - पएं, प्रवे न करे को वार ॥ ए॥ संदरी वात प्रवे सुणावतो, करतो चेष्टा अनेक ॥ आंगली गलतां पूंचो ली, रजनी आवे धरी विवेक ॥१०॥ ॥ढाल चोथी॥ ॥रे जीव दानजदीजीए ॥ ए देशी॥ निजाजर सुती सुंदरी, पोढी ने पमशाल ॥ आसक आवी पापीठ, रजनी हरे ते बाल ॥१॥ एहवां कर्म न कीजीए, जेणे दंडे राय ॥ मात पिता न्याति परिहरे, परनव नरके जाय ॥२॥ एहवां ॥ए आंकणी॥चंचलपणे चोरी करे, निस जर निमा बाल ॥ जागी अबला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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