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चौबी०
पूजन
संग्रह
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बोधते अणु सुवत पंच को गहे ॥राज भोग जेः अपार आप ने किये महा। तीन लोक नाथ के ससौख्य को कहे कहा ॥८॥ भोग त्याग योग को विचार आपने करे । ब्रह्मदेव आन के सुपुष्प चरण में धरे॥ लाइयो सुरेश पाल की तबै नई जहां । है सवार आप सर्व संग को तजो तहां ॥९॥ जाय के अरण्य बीच ध्यान आपने धरे। तीन गुप्तिपाल व्रत पांच जो तहां करे। घाति चार घातिया अपार ज्ञान पाइयो। भव्य वृन्द बोध के समेद शैल आइयो। योग को निरोध ठान मोक्ष को गये सही । देव के समूह आन पूजते वही मही । मैं करूं जुतोह सेव दीन के दयाल को, कीजिये निहाल मेट आपदा सुकाल की ॥११॥ मैं नमूं जिनेश तोहि आप बास दीजिये। जन्म मृत्यु आधि व्याधि सर्व दूर कीजिये। सेव चर्न में सदेव दास को सुलीजिये , बार बार याचना करूं सुवेग दीजिये ॥ १२॥
पत्ता छन्द-धन्य धन्य सुमतेश के । युग चरणाम्बुज सार ॥ तिन पर बल बल जात हूं, भाव भगति उर धार ॥ १३ ॥ ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महापं निर्वपामीति स्वाहा । ... अथ आशीर्वादः । छंद कोसमालती-जो श्रीसुमति जिनेश्वर पूजें, अथवा पाठ पढ़ें मन लाय । तिन के
पुण्यतनी जो महिमा, सुर गुरु पै वरनी नहि जाय ॥ पुत्र पौत्र परताप बढे अति सुख संपति पावें अधिकाय । बखतावर अर रत्नदास के, हुजे प्रभु जी वेग सहाय ॥ १४॥
इत्याशीर्वादः । इति श्रीसुमतिनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥५॥