Book Title: Varttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Author(s): Bakhtavarsinh
Publisher: Bakhtavarsinh

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Page 239
________________ पूजन संग्रह धर्म ही, में जजू अर्घ ले मेटिये कर्म ही। डों ह्रीं श्री महाबीर जिनेंद्राय वैशाख शुक्ल दशमी ज्ञान कल्याण प्राप्तात अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ निर्वाण-नग्रपावापुरी सार उद्यान में, योग निोरधियो ठान के ध्यान में। मावसी कातकी भ्रमर की लीजिये, सिद्ध राजाभये बास मो दीजिये । ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेंद्राय कार्तिक कृष्ण अमावस्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अथ जयमाला। दोहा। महा अर्घ-सकल सुरेश नरेश अर, किन्नरेश फनयेश । ते सब बंदित चरणयुग, बंद बीर जिनेश । छन्द पद्धडी-जयजय जयजय श्रीबीर राज, भवसागर में अद्भुत जहाज । जय पुष्पोत्तर तजके विमान, त्रिशिला माता की कूष आन ॥२ सिद्धारथ तात बडे सुजान, जय कुंडिनयर नगरी महान । तिनके घर आप भये जिनंद,हरिवंश व्योम ऊगे सुचंद ॥ ३॥ तव अमरन के आसन चलाय, सिर मुकुट नयत अचरज लहाय । कल्पन घर घन घंटा बजाय, ज्योतिष घर के हरिनाद थाय ॥४॥ भवनालय संग बजे अपार, व्यन्तर के मंदिर ढोल सार । इन चिह्न थकी तुम जन्म जान, इंद्रादिक आये हरषमान ॥५॥ कुंडिन पुर से गिरिमेरु जाय, इक सहस वसु कलसे दुराय। तब मघवा स्तुतिजु कर बनाय, तुम नाम धरो जिन बीर राय ॥६॥ शचि पौंछ कियो श्रृंगार येम, सोहत भूषण को कल्प

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