Book Title: Varttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Author(s): Bakhtavarsinh
Publisher: Bakhtavarsinh
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चौबी० . ज्ञान-सित मगसिर ग्यारस हने, घाति कर्म दुःख दाय । केवल ज्ञान उपाइयो, वृष भाषा दुःखदाय। पूजन... ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय मार्गशिरशुक्ल एकादशीज्ञानकल्याणप्राप्ताय अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा संग्रह निर्वाण-चतुर्दशी वैसाख तम, हन अघाति लह मोष, सम्मेदाचल तें गये, भये गुणन के कोष॥ ५६४ . ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्राय वैशाख कृष्ण चतुर्दशी मोक्ष कल्याणप्राप्तायअर्घ निर्वामीतिस्वाहा
अथ जयमाला ।दोहा। महाअर्घ-इंद्र नरेन्द्र फणीन्द्र नर,स्तुती करें जु वनाय । गुण वारिधि नमिनाथ के, पार न पाये जाय॥१॥ पै तुम भक्ति सुहिय मम, प्रेरत आठों जाम । मति माफिक कछु कहत हूं, गुण माला गुण धाम ॥२॥
छन्द पद्धड़ी-जयजय जयजय नमिनाथ देव । सुर नर इंद्रादिक करत सेव ॥ दश सहस वरष की आयु पाय । धनु पंद्रह कंचन वरण काय ॥ ३॥ जय लक्षण पंकज खंड सार । उपमा वरनत पाऊ न पार । जय तपकर चारों अरि प्रजार । पायो तब केवल पद उदार॥४॥ तव समव सरन रचना समार। कीनी इक छिन में धनद त्यार ॥ दोयोजन की इक शिल सुधार,नीली अति सोहे गोल कार ॥ ५॥ अवनी तें ढाई कोश जान । उन्नत सिवान सोहे महान ॥ ताप रचना बहु भांति कीन धूली शालादिक का प्रवीन ॥ ६ ॥ तहां समवसरण में इंद्र आय । स्तुति कीनी मस्तक नवाय । जय तुम देवन के देव इष्ट । भव दधि तारन म... . . ट ।

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