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चौबी० घजन संग्रह
चास लीना। दास बिनती करे चरण उरमें धरे,कीजिये नाथ संसार छीना ॥ॐ ह्रीं श्रीनेमिना जिनेन्द्राय आषाढ शुक्ल सप्तमी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
. अथ जयमाला। दोहा। . ५७० महाअर्घ-हरि हरादि हारे सबै, दिये विरंचि डिगाय । सो मकरध्वज तुम हनो,अहो नेमि जिनराय ॥
. ..... छंद भुजंगप्रयात-तजो वैजयंत लयो जन्म स्वामी । शिवा देवि माता महा सौख्य पामी। भले द्वारिका नग्र में आप जाये। हरी आदि निर्जर सबै आन ध्याये ॥ २॥ गये मेरु शीसं कियो न्हौन भारी । पिता मात को सौंप आनंद धारी ॥ प्रभु बाल लीला कही नाहिं जावे। कभी रत्न भूपै कभी गोद आवे ॥३॥ शची आदि देवी गहे कर चलावे । कभी चाल सीधी कभी अट पटावे ॥ छबी श्याम सुंदर मनो मेघ कारे । भये वर्ष अष्टम अणु व्रत्त धारे ॥४॥ छपन कोड यादों सभा जोड लीहै। चली बात ऐसे कहे को बली है ॥ प्रभु अंगुरी बीच जंजीर डारी । सबै खैच हारे झुलाये मुरारी ॥ ५॥ हली आदि जेते सबै शीस नाये। भई फूल वर्षा सुरों गांन गायें ॥ करै कृष्ण नारी खडी अर्ज भारी । सुनों आप स्वामी वरो एक नारी ॥ ६ ॥ तबै आप मानी करी कृष्ण त्यारी। चढे व्याहने को सबै राज धारी ॥ सजनागढी सोंव के बीच आये । पश टेर कीनी वचन यों सुनाये ॥७॥ घिरे फंद . ' मांही न दीस सहाई। पड़े. काल के बीच दीजे छुड़ाई ॥ सुने बैन ऐसे तबै ही छुड़ाये । गही सार दीक्षा