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चौबी०, जन्म-शुक्ल छठ सावनी अमर मन भावनी तास दिन आपने जन्म लीना । सुरन आसन चले मौलि
तब ही हले,सात पग चाल तब नमन कीना ॥ आइयो सुर पति नगर द्वारावती शची कर लेय जिन रूप चीना । मेरु गिरि पे गये वारि कलसे लये,सहस अर आठ सिर धार दीना॥ ॐ ह्रीं
श्रीनेमिनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल षष्ठी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। | तप-व्याह हरिने ठयो यान सजतो भयो, चढे जब आप श्रीनेमि स्वामी। पशु धनि जव सुनी करत 'चिंता गुणी, चतुर्गति माह जिय दुक्ख पामी। छोड रजमति तिया नेह शिव तें किया,बास बन
में लिया हनो कामी। जन्म की तिथि कहा व्रत महा जब गहा,कियो तब मौन जिन भये नामी॥
डोंह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेंद्राय श्रावण शुक्ल षष्ठी तप कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञान-कार एक भली सेत पष में रली मोह सेन्या दली ज्ञान पायो। समवसर की ठनी धनद रचना ||
तनी सभा द्वादश बनी इंद्र आयो॥ चरण अरचा करी हरष उर में धरी मान धन धन घरी शीस नायो । आप बानी भई सबै जग सरदही, मेट ममपीर में अर्घ लायो॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय आश्विन शुक्ल प्रतिपदा ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। || निर्वाण-शैल गिरिनार पै मास बाकी रही, आयु तब योग नीरोध कीना। खिरत बानी नहीं मौन सब
"ही लही सप्तमी साढ सित मोक्ष चीना। लोक. अलोक के आप ज्ञायक भये अष्टमी धरा निज ॥