Book Title: Varttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Author(s): Bakhtavarsinh
Publisher: Bakhtavarsinh

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Page 215
________________ पौवी० पंच कल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेयं निर्वपामीति स्वाहा ॥ दीप-यह मोह अंध सुज्ञान ढापो.आप पर नहि भास ही। मणि दीप जोय सु चरण पूजू करो ज्ञान पूजन संग्रह प्रकाश ही ॥ तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी। हरिवंश नभ में आप शशि ५५७ सम कांति सोहे अति घनी॥ . डों ह्रीं श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोहांधकार विनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. धूप-यह आठ कर्म अनादि ही के बहुत दुख मोको करो, यातें सुगंधी धूप खेऊ अष्ट दुष्ट सबै हो। तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी। हरिवंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति घनी ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपानीति स्वाहा ॥ ... फल-पुरषार्थ रोको अंतराय सु मोह दुर्बल जान के, शिवथान दो तुम चरण अरचूं फल अनूपम आन के। तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी, हरिवंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अति घनी ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलंनिर्वपामीति स्वाहा ॥ | अर्घ-जल चंदनाऽक्षत सुमन, नेवज दीप गंध फलोघ ही। भरके रकाबी अरघ लीजे, जजू हरत्रय 'रोग ही । तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुव्रत धनी। हरि वंश नभ में आप शशि सम

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