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चौबी० पहुंचे विपिन मझार सहस राजा संग लीनी, दीक्षा निज हितकार दिगंबर मुद्रा चीनी । मन परजय पूजन
लहज्ञान बिहरत इकल विहारी, ग्यारह बरष प्रमान प्रभू तुम मौन सुधारी ॥७॥ पायो केवल संग्रह
ज्ञान लोका लोक निहारे, दे उपदेश महान भवोऽधित भवितारे। मास रही इक आय गिरी सम्मेद पधारे, योग निरोध सुठान चारों कर्म निवारे ॥ ८॥ सिद्ध भये तुम देव तब इंद्रादिक आये, कीनो मोक्ष कल्याण सबै मिल मंगल गाये । कीनो अंक सुरेन्द्र तास शिलशिव तुम पाई। पूजत हैं भवि जाय चरण तुमरे हरषाई ॥९॥ ___ दोहा-यह गुण पूरन देव की गुणमाला अविकार, जो जन धारे कंठ में ते पावै भव पार ॥१०॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ्य पद प्राप्तये महाघ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ____ अथ अशीर्वादः-कुंडलिया छंद । पूजा मुनिसुव्रत तनी जो कर हैं मन लाय, अथवा अनुमोदन करें पढ़े पाठ चित लाय । पढ़ें पाठ चितलाय तास घर संपति भारी, पुत्र मित्र सुख लहें बहुत जन आज्ञा कारी॥ कह बखतावर रतन तास सम नर नहिं दूजा,मन बच काय लगाय करें जो निशि दिन पूजा ॥ ११॥ इत्याशीर्वादः । इति श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥२०॥