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संग्रह . ५१९
चौबी०
.: छाड बन जाय दीक्षा गही। धार निज ध्यान को कर्म तैं जय लही ॥१२॥ पूजन
| आर्याछंद-पायोकेवलज्ञान,दीनो उपदेश भव्यबहुतारे। शिखर समेद महानं,पाईशिवसिद्धअष्ट गुणधारे।। | छन्द कामिनी मोहन-धार गुण सिद्ध के आप नामी भये । पूजता अवनि को शक निज थल गये। | हे दया सिंधु यह टेर सुन लीजिये। दास बखता रतन तास शिव दीजिये ॥१४॥ घत्ता छन्द-जय विमल जिनेश्वर कर्म हनेश्वर दुःख दरिद्र नाशे पलमें। जे पूजा भारी करें तुम्हारी ||
ते उपजे जा शिवथल में ॥१५॥
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय ||
.: . अनर्घ पद प्राप्तये महाअघ नि पामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । सोरठा-पूज पढ़ें यह पाठ, अथवा अनुमोदन करें। अष्ट करम को काट, ते पावें || शिव सुख महा ॥ १६ ॥ इत्याशीर्वादः । इति श्रीविमलनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ १३ ॥
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