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१४ अथ श्रीअनन्तनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥
चौबी० पूजन संग्रह ५२०
(बखतावरसिंह कृत) माधवी छंद । स्थापना-तज के पुष्पोत्तरसार बिमान, पिता हरसेन के पुत्र कहाये। .
जगमात सु सूर्य के नंदन आप, भवो दधित भव पार लगाये॥ -ज़िनऽनंत तुम्हें हम थापत हैं, मन शुद्ध किए अति ही उमगाये। जिन नाथ हमें अब कीजे सनाथ, सुदास के काज सबै बन आये ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ॥
ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्र अत्र मम संनिहितो भव भव वषट् संन्निधी करणम् ।
..... (अथअष्टक ) गीता छंद। जल-जोहिमनगिरिपै पदम हद शुभ, तास को जल लाइये। भरगंध मिश्रित धार दीजे, तृषा रोग
नशाइये ॥ श्री नंत जिनवर छवि सुतेरी, देखते नाशें अरी। इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आनपद सेवाकरी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेद्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्युजरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥