________________
चौबी०
पूजन
.५८४
दोहा-संवत अष्टादश शतक, और वानवेंजान । फागनकारी सप्तमी, भौमवार पहचान । ॥१॥ मध्य देश मंडल विषै, दिल्ली शहर अनूप । बादशाह अकवर नसल नमन करें बहु भूप ॥२॥ चार वर्ण जहां वसत है, कोई न दुःख स्वरूप । शैली श्रावक धर्मकी, लसत महा सुख कूप ॥ ३ ॥ नाना विधि रचना सहित, सोहत जिन आगार । चरचा अध्यातम तनी, करै भव्य हित धार ॥४॥ शैली में सज्जन भले, सुगनचंद गुण खान । पुत्र सुगिरधर लाल तसु, ज्ञानवान जसवान ॥ ५॥
सवैया । तिसही शैली मंझार पंडित विवेक धार गिरधारी लाल सार स्नेही लालजानिये। कानजीमल्ल आन जै जै मल शीलवान गुपालराय साहिबसिंह सज्जन पहचानिये । २ । बाल बुद्धि को विचार बखतावर नाम धार रत्नलाल अग्रवाल न्यात जिस मानिये ॥ ३ ॥ ताने रचो पाठ जोग वांचो सब सुधी लोग भूल चूक शोधकर क्षमा उर आनिये ॥ ४॥
__ दोहा-मित्र युगल मिलके कियो, मन में यही विचार । शुभ कारण पूजारची, कछु पिंगल अनुसार ॥ ५॥ अलंकार जान नहीं, नहिं लौकिक सुज्ञान । भक्ति एक उरधार के, रचो पाठ हितमान ॥ ६॥ वखतावरसिंह सीखियो, कछु भाषा की चाल । तातें पाठ बनाइयो, वुधि माफिक अघटाल ॥७॥
कुंडालियां छंद-भ्राता रतन सु लाल को नाम रामपरसाद । तिन तें रतन जो सीखियो कछ छंद मरजाद । कछु छन्द मरजाद आदि अक्षर सिखलाये । विद्या कछू पढाय बहुत उपकार कराये। क र .. ... ..