________________
.
.
.
.
चौबी० पूजन
... तुम्हें शीस नावें अहोचंद नामी। ओं ह्रीं श्रीचंद्रप्रभ जिनेंद्राय फाल्गुण कृष्ण सप्तमी मोक्ष || कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ जयमाला । दोहा। - महाअर्घ-माता जास सुलक्षणा, कुंद कलीसम श्वेत । वपु उतंग धनु डेढसै,शशि अंक छबी देत ।
. छन्द लक्ष्मीधरा-श्रीमहा सेन के नंदना हो बली, मात सुलक्षणा पूज हूं मैं भली। तास की कृष में आप आये जबै, गर्भ, कल्याण देवेंद्र कीनो तबै ॥२॥तात के धाम की सर्स शोभा बनी।सर्व देवी करें सेव अंबा तनी । गर्भ नवमास आनंद भारी भयो, रोग शोकादि भय सर्व ही को गयो ॥३॥
छंद उपगीता-जन्में चंद जिनंदा, पौष संख्या सुरुद्र की कारी। करत महा आनंदा,आये सब | देव इंद्र की लारी॥४॥ ....... 'छंदलक्ष्मी धरा-आईयो इंद्र इंद्रायनी मोदमें, लाईयो प्रेमजा आपको गोक्में। रूप देखो शुनासीर चक्रित भयो, नाय के भाल ऐरावती पै ठयोः ॥५॥ जाय के मेरु पै न्हौन कीनो हरी, नम्रता धार के चरण पूजा करी । जय कृपा धीश तेरी छवी मोहनी, चंद्र की चंद्रिका ते महा सोहनी॥६॥ एक हजार लेनाम मालारची, नृत्य औगान कीनों तबें ही शची। फेरली आपको मोद दे मात को, मे रुकी बारताभाषियों तात को ॥७॥