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चौबी० मो को उबार ॥९॥जय मौन सहित बहुधरत ध्यान, जय षोडश वर्ष गये सुजान। चवघाति कर्म पूजन कीने निवार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥१०॥जय केवल ज्ञान जगो रिसाल, जय तत्व प्रकाशे संग्रह तुम दयाल। सव भव्य बोध भव सिंधुतार, लीजे स्वामी मो को उबार ।। ११ ॥ जय आरज देशन ५४२ कर विहार, जय आये गिरि संमेद सार। सब विधि हन पाईं मोक्षनार, लीजे स्वामी मो को उबार
॥१२॥ जय जग जीवन के तुम दयाल,जय तुम ध्यावत हुए निहाल । जय दारिद गिरि नाशन कुठार, लीजे स्वामी मो को उवार ॥३॥ जय सिद्धथान के बसन हार, बखता रतना की यह पुकार । मो दौजे निज आवास सार, लीजे स्वामी मो को उबार ॥ १४ ॥
पत्ता छन्द-यह दुःख विनाशन सुख परकाशन जयमाला अघ को टरनी। मैं तुम पद ध्याऊं पूज रचाऊं शिवपद पाऊंभव हरनी ॥ १५॥ ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथ जिनेंद्राय गर्भ जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महाघु निर्वपामीति स्वाहा॥ ___ अथ आशीर्वादः । दोहा-कुन्थु जिनेश्वर देव को, जो पूजे मन लाय । पुत्र मित्र सुख संपदा, तिन घर सदा रहाय ॥ १६॥ इत्याशीर्वादः ॥ इति श्री कुन्थुनाथजिन पूजा संपूर्णा ॥ १७ ॥