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चौबी.
पूजन
सग्रह
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अथ जयमाला । दोहा। | महाअर्घ-शीतलनाथ जिनंद तन, नव्वै धनुष प्रमान। हेमवरण अति सोहनों, सुरतरु लक्षग जान ॥
चौपाई-नम नमूं जिन शीतल नाथ । शरणागत को करत सनाथ ॥ भवदधि तारण पोत समान । अधम उधारण को भगवान ॥ २॥ तज आलस अति हरषित होय । तुमरो दर्श लखे जन कोय ॥ सो होवे निश्चय सरदही। सहस्राक्ष कर दरशत सही ॥३॥ तुमरो पंथ गहे जे आय । तेशिव पुर को गमन कराय ॥ जो तुमरे गुण गावे ईश । तिन गुण गावे सकल मुनीश ॥ ४॥ तुमरे चरण विषे लंब लाय । ते जन वीतराग पद पाय । नृत्य करे तुम आगे कोय ॥ तिस घर शक्री नटवा होय ॥ ५॥ तुम चरणाम्बुज रजशिर लहे । परम औषधी सम शर दहे। कुष्ट आदि सब रोग नसाय । कोटि भानु सम तन दरसाय ॥६॥ जे जन रूप लपें तुम देव । करें कुदेव तनी नही सेव ॥ मकर ध्वज सम रूप रसाल । भव भव तन पावे सुख माल ॥७॥ जे वाणी तुमरी चित धरें। अन्य ग्रन्थ शरधा नहिं करें ॥ ते बहु श्रुत के पाठी होय। केवल ज्ञान लहें नर सोय ॥ ८॥ तुमरो न्हौन करे चितधार । सुवरण रतन कलस भर वार ॥ ताको मेरु सुदर्शन जाय । मघवा न्होन करे हरषाय ॥ ९ ॥ अष्ट द्रव्य अति प्राशुक लाय । पूजा करे भविक हरषाय ॥ पूजनीक पद पावे सोय । इंद्रादिक कर पूजित होय ॥ १० ॥ भली भांत जानी तुम रीत । भई नाथ मेरे परतीत ।। यातें चरण कमल में आय। भ्रमर समान