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संग्रह
र दैदीपमान, विदिशन में द्वादश सभा मान । श्री मंडप शोभा अतिलहाय, तिहुँ लोक तने सव जंतु - माय ॥ ८॥ विच गंध कुटी कटनी समेत, तहां तरु अशोक छवि अतुलदेत । तुम अंतरिक्ष राजत .. जिनंद, सिर छत्र तीन लाजत सुचंद ॥९॥जीवादिक तत्व प्रकाश कीन, सन कर भविं उरधारें प्रवीन ।
तुम कर विहार देशन मंझार, षट् वरष ऊन लख पूर्व सार ॥१०॥ यक मास आयु जव शेष थाय, तब संमेदागिरि शीस आय। हनि के अघाति शिव वास लीन, उत्पादक व्यय ध्रुव सर्व चीन ॥११॥ तुम गुण को पार लहे न शेष, हम किम वरने लघु मति अशेप । वखता रतना नित करत सेव, मुझ देह अर्षे पद पद्म देव ॥ १२॥ घत्ता छन्द-श्री पद्म जिनेशा हरत कलेशा भगत भरेसा अमर नये । यह दाम गुणन की भव्य सुनन ___ की गूंथ संवारी शरमलये ॥ १३॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण - पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महाऽनिर्वपामीति स्वाहा । अथ आशीर्वादः-सोरठा-जो पूजें हरषाय, अथवा अनुमोदन करें।सो शिव पर क . . पढे पढावे जे सुधी ॥ १४ ॥ इत्याशीर्वादः॥ .