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चौबी०
.. शक्ल पूर्णिमा ज्ञान कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।। जन निर्वाण-तिथ जानोजी फागुण कारी बेदही,गिरिशिखर सुजीअष्ट करम को छेदही। शिव पाई जी प्रकृति - संग्रह पिचासीहान के, पद पूजू जी परप्रभ भगवान के। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय फाल्गुण कृष्ण चतुर्थी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥
अथ जयमाला। दोहा। महाअर्घ-धनुष अढाईसौ उनत, अरुणवरन अविकार। पद्म चिन्ह चरणन विषे,नमं उभयकर धार॥१॥
छंद पद्धडी-जय पद्मनाथ तन अरुण जान,नख दुति तें लाजत कोटि भान । धारण नृप कमल विकाश सूर, अज्ञान तिमिर कोनो सुचूर॥५॥तुम समवसरन रचना अपार, मैं कहूं किमपि लघु बुद्धिधार । साढे नव योजन को प्रमाण, शुभ वीस हजार बने सिवान ॥३॥ पहिलो ही कोट सुधूल साल, तिस गोपुरचव लंट के सुमाल । तिस आगे भूमि प्रसाद सार, चव मानस्थंभदिये अपार ॥ ४॥ त्रय कटनी विविध प्रकार जान, पहिली दूजी मणि मइ बखान । वहु वरण रतन तीजी सुहात,मानी जन देखत मान जात ॥५॥ता आगे कोट उतंग श्वेत, चारों दिस है गोपुर समेत । युग बीथी हैं दो नाट शाल, सुर तिय नाचे गावें विशाल ॥६॥ तहां पुष्प वाटिका वन उतंग, सुर तरु हैं चारों दिश अभंग । तिस आगे कोट जु हेम जान, ध्वज पंकति रूप लसे महान ॥७॥ फिर फटक कोट