Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 20
________________ कपिमालिकार संभ्रमात VI. 125.42b कपिमुख्य त्वयाऽस्ति वै V. I.IIod ., महागुण: V. I. 120d कपिमुख्याः समागताः IV. 67.32d कपिमुख्यौ समागतौ VI. 13.12d कषिमूर्धनि राक्षस: VI. 86.28d कपिराज इवापरः IV. 16.31d कपिराजबलं महत् VI. 11.25) कपिराजविमुत्तस्त: VI. 90.12a कपिराजस्यतन्मुखम् IV. 23.Th , धीमत: VI. 46.350 कपिराजहितंकर : V. 4.3b V. 4.8d कपिराजाय राणवी IV. 5.1d कपिराजेन संगम्य IV. 47.5c कपिराजोऽभिरक्षतु VI. 2.1.18d कपिराज्यं च शाश्वतम् IV. 35.5b , ,, ,, IV. 36.5b " .. , IV. 38.25b ,, , , VI. 28.32D कपिराज्यं यथा पिता IV. 54.8d कपिराजा यथायामम् V. I.I70a कपिहां परित्यज्य IV.3.2a ., व्यवस्थितम् V. 40.14d कपिरूपेण हा इति V.5-1.25d कपिरेष खालत: 1. I.IOS) कपिर्ददर्श स्ताव जितानि V.7.3d कपिदमिमुखो बली V. 3. ISd कपि/रपराकम: V. 40. Id कपिमन्दोदरी तत्र V. 10.52c कपि स्तनन्दन: V. 18.20d कपिलाघवनिस्मित VI. 50.80b कपिलेनाप्रमेयेण I. AI.Ika कपिलो दीर्घकेसर: VI. 26.20b ,, रघुनन्दन 1. 40.29d | कपिलं श्रीमती यथा V. 24.IId कपिवातश्च बलवान् V. 1.68a कपिवायुसमीरितम् V. I.51d कपिवृद्धमतेन च IV. 67.33d कपिशोणितदिग्धाङ्गम् VI. 67.54a कपिश्च रक्षोऽधिपतेस्तनूजः V. 48.26c कपिः शृङ्गाटकानि च V. 53.20d कपिश्रेष्ठस्य युध्यतः VI. 83.3d कपिः सविपुलद्रुमम् VI. 58.21b ,, साङ्करकोरकै: V. I.49b कपिसिंहाः प्रकर्षन्तु VI. 4.14c कपिसिंहे महाभागे IV. I0.18c कपिः सुभीतस्य दुरासदस्य IV. 2.2gb कपिसेनापतिवार : IV. 45.8c कपिसेनाभ्यवर्तत VI. 57.40f कपिसन्यजिघांसवः VI. 86.8d कपिस्ततस्तं रणचण्डविकमम् V. 47.19a ,, विचरन्तमम्बरे V. 47.34a ! कपिस्तत्र ददर्श ह V. II.26b ,, व्यस यत् VI. 96.27d कपिस्तु तस्मिन्निपपात पर्वते V. 1.2015 कपीनां कपिसत्तमः V.64.39b ,, कपिसत्तमाः IV. 42.5d ,, किल लालम् V. 53.3a , दीप्ततेजसाम् IV. 35.22f कपीनामसिभिः शितैः VI. 75.64b कपीनामीश्वरो राज्ये IV. 9.2c कपीन्खादन्प्रवावति VI. 67.97d कपीन्द्रं तेजसा वृतम् V. 50.2b कपीन्द्र युक्तं मनसाऽप्यपोहितुम् IV. 32.221) कपीन्द्रस्तेन रक्षसा VI. 96.1b कपीन्निजनिरे तत्र VI. 55.28a कपीशः कपिमुख्यानाम् IV. 41.7c कपीश्वर तवाज्ञया IV. 29.26d कः पुन तिवर्तेत V. 20.14c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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