Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 21
________________ कः पुमांस्तु कुले जात: VI. 115.1ga कपेः कुमारस्य च वीर्यसंयुगम् V. 47.13C कपेः परमभीतस्य IV. 2.3c कपेः प्रभावं च पराक्रमं च V. 48.8b कपेरस्य प्रमापणम् V. 52.6d कपे रामदिवाकरः V. 37.18b कपेर्निशम्या प्रतिमोऽप्रियं वच: V. 51.45b कपेर्बलाद्धि प्रमदावनस्य V. 41.20d कपे लाघवयुक्तोऽसि VI. 59.84c कपोताङ्गारुणो घन: IV. 13.23d धूम: II. 119.6c कपोता रक्तपादाच VII. 6.570 विचरन्ति च VI. 35.31d "" कपोतो वानरश्रेष्ठ VI. 18.250 कः प्राप्स्यत्यतिथिं प्रियम् II. 50.37b " در प्रियं लभतामद्य II. 10.32d कबन्धदर्शनं चैव I. 3.21 VI. 124.1IC कबन्धं नाम राक्षसम् VI. 126.35b रूपेण I. 1. 550 33 "" 22 39 " कन्धः पतितो भुवि VI. 51.32d परिघाभासः III. 23. IIC पुनरब्रवीत् III. 73.1d "2 प्रस्थितस्तदा III. 73.45d कबन्धमिव संस्थानात् III. 69.34c कबन्धमुदरेमुखम् III. 69.27d कबन्धं भुजसंवृतम् III. 69.34b कन्धश्च निपातित: V. 16.7d कबन्धश्चान्तकोपनः VI. 30.2gd कन्धसदृशो बने III. 50.16b कबन्धस्त्वनुशास्यैवन् III. 73.42c कबन्धस्य खरस्य च VI. 24.30b दुरात्मन: III. 69.46d महाबल: III. 70.12d ފ " "" कन्धानि समुत्पेतुः VI. 43.45c Jain Education International १८६ कबन्धानि समुत्पेतुः VI. 54.roa कबन्धेन नरेश्वरौ III. 72.1b कन्धो दण्डकावने VI. 107.60b दानवोत्तमः III. 69.43b निहतो मया VI. 123.42b राममब्रवीत् III. 72.7b रुधिराशन: VI. 94.16b वाक्यमब्रवीत् III. 7o rd " कमण्डलु शिखाध्वजम् VII. 25.4b कमलानां शुभां मालाम् III. 46 16c कमलान्यवमज्जन्ती II. 95.14e कमलोत्पलशोभिताम् III. 73.12b कम्पते च वसुंधरा VI. 23.4b VI. 41.13b " در " " 39 ܕ वाहिनीमुखे II. 97.25b "" कम्पनः पतितो भुवि VI. 76.3d " सत्ववन्तश्च VI. 89.14C कम्पमानं मुहुर्मुहुः VI. 101.28b कम्पमानैः शरद्वनैः V. 56.30d कम्पमानैश्च शिखरैः V. 56.430 कम्पयन्त इवार्णवम् VI. 65.46d कम्पयन्तश्च तां लङ्काम् VI. 39.1 C कम्पयन्तो वसुन्धराम् VII. 39.1d कम्पयन्धरणीतलम् VI. 34.27d कम्पयन्निव कैकेय्या II. 35.30 पर्वतान् VI. 50.33d मेदिनीम् V. 22.44b VI. 56.13d 22 " " " "" رد For Private & Personal Use Only 22 وو VI. 67.1150 VII. 21.45d " मे मनः IV. 56.1gd कम्पयन्मेदिनीं सर्वाम् I. 74.14a कम्पयामासतुर्भृशम् V. 1.68d कम्पयित्वा शनैर्जगत् VI. 21.26b कम्पयिष्यामि पर्वतान् IV. 67.22d www.jainelibrary.org

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