Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 21
________________ बल्कि वे तो और भी अधिक निर्मल हो जाते हैं, जैसे क्षार के द्वारा मलिन किया जाता हुआ दर्पण और भी अधिक निर्मल हो जाता है (6)। इसमें सन्देह नहीं किया जाना चाहिए कि मूल्यों-रहित व्यक्तियों के कारण ग्राम और नगर, जहाँ ऐसे व्यक्ति होते हैं, बर्बाद हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे कुपुत्रों के कारण श्रेष्ठ कुल नष्ट हो जाते हैं और कुमंत्रियों के कारण समृद्ध नराधिपति नाश को प्राप्त होते हैं (40)। इसलिए कवि ने ठीक ही कहा है कि मूल्यों के समान कोई निधि नहीं हो सकती है (39)। मूल्यों-सहित और मूल्यों-रहित व्यक्ति की सामान्य चर्चा के पश्चात् अब हम उन विशिष्ट मूल्यों की चर्चा करना चाहते हैं जिन्हें वज्जालग्ग के रचयिता जयवल्लभ ने महत्व दिया है। प्राकृत के महत्व में प्रास्था : प्राकृत के महत्व को समझने के कारण प्राकृत काव्य को नमस्कार किया गया है (5)। इतिहास हमें बताता है कि वैदिक काल से ही प्राकृत जनता की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है। अतः प्राकृत की प्रतिष्ठा जनता की प्रतिष्ठा है। प्राकृत के प्रति प्रेम होने से जनता के प्रति प्रेम स्वयमेव ही उत्पन्न हो जाता है। यह सर्व विदित है कि सामाजिक जीवन के विभिन्न आयामों में जनता ही सर्वोपरि होती है। जनता में आस्था ही सर्वोपरि सामाजिक मूल्य कहा जा सकता है। इसी आस्था से ही अन्य सभी सामाजिक मूल्य व्यक्ति के जीवन में धीरे-धीरे प्रविष्ट हो जाते हैं। जैसे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति से सम्यक् चारित्र सहज हो जाता है, वैसे ही जनता में आस्था उत्पन्न होने से जीवन-मूल्यों का ग्रहण सरल हो जाता है। प्राकृत भाषा के प्रति प्रेम जनता में आस्था उत्पन्न करने का एक सबल माध्यम है। इसलिए कहा गया है कि प्राकृत काव्य के लिए नमस्कार, जिनके द्वारा प्राकृत [ वज्जालग्ग में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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