Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 20
________________ सामने आती है, किन्तु विद्य पर्वत पर वह प्रकट नहीं होती है (81) मूल्यों सहित व्यक्ति दूसरों के थोड़े गुणों की भी प्रशंसा करता है । वह दूसरों के मामूली दोषों के पचड़े में नहीं पड़ता है ( 95,34 ) । यह महापुरुषों की असफलताओं को देख कर भी उनके प्रति अपनी निष्ठा नहीं खोता है । वह यह समझता है कि महान व्यक्तियों का चढ़ना और गिरना होता ही रहता है । वह प्रकृति को देख कर सोचता है कि चन्द्रमा का क्षय होता है, किन्तु तारों का नहीं, चन्द्रमा की ही वृद्धि होती है किन्तु तारों की नहीं होती है । इसी तरह महान् व्यक्तियों का ही चढ़ना और गिरना होता है परन्तु सामान्य व्यक्ति हमेशा गिरे हुए ही होते हैं ( 74 ) । यह आश्चर्य है कि मूल्यों-रहित व्यक्ति (दुष्ट) केवल दोषों के कारण ही गर्व करते रहते हैं और बिना किसी कारण ही दूसरों से वैर करने लगते हैं ( 18,19 ) । इस जगत में यह देखा गया है कि जो गुणी हैं, मूल्यों सहित हैं, निर्धनता से ग्रसित होते हैं ( 60 ) । अतः कवि ने बहरे और अन्धे व्यक्तियों को धन्य कहा है क्योंकि वे ही ऐसे व्यक्ति हैं जो दुष्ट के वचन को नहीं सुनते हैं और दुष्ट के वैभव को नहीं देखते हैं ( 22 ) । यह भी पाया गया है कि मूल्यों-रहित व्यक्ति धन प्राप्त करने के पश्चात् कृपण हो जाते हैं । उनके धन का कोई उपयोग नहीं होता है । वे इस बात को नहीं सोच पाते कि लक्ष्मी एक न एक दिन उनको छोड़ जायगी । कृपणों के भंडार उनके मरने पर ही प्रकट होते हैं । वे संभवतया धन को भूमितल में इस भ्रम में गाड़ते हैं कि मरने पर उन्हें धन मागे भी मिल जायगा। उनके रुपये-पैसे न स्वयं के और न समाज के कोई काम के होते हैं ( 75-79) । यह अनुभव किया गया है कि मूल्यों-रहित व्यक्ति (दुर्जन) मूल्यों- सहित व्यक्तियों (सज्जनों) की निंदा में, उन पर दोषारोपण करने में लगे हुए होते हैं, तो भी मूल्यों सहित व्यक्तियों की कोई हानि नहीं होती है, जीवन-मूल्य ] Jain Education International For Personal & Private Use Only [ v www.jainelibrary.org

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