Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 35
________________ 12. नेच्छसि परावयारं परोवयारं च नियमावहसि । प्रवराहेहि न कुप्पसि सुयण नमो तुह सहावस्स ॥ 13. दोहि चिय पज्जतं बहुएहि वि कि गुणेहि सुयणस्स । विज्जुप्फुरियं रोसो मित्ती पाहाणरह व्व ॥ 14. वीणं प्रभुद्धरिडं पत्ते सरणागए पियं काउं । प्रवरद्ध सु विखमिउं सुयलो विचय नवरि जाणे ॥ 15. बे पुरिसा धरइ धरा ग्रहवा दोहिं पि धारिया धरणी । उवयारे जस्स मई उदयरियं जो न पम्हुसइ ॥ 16. सेला चलंति पलए मज्जायं सायरा वि मेल्लंति । सुरणा तहपि काले परिवन्नं नेय सिलिंति ॥ 17. चंब रगतर व्व सुयना फलरहिया जइ वि निम्मिया विहिणा । तह वि कुणंति परत्थं निययसरीरेण लोयस्स ॥ 6] Jain Education International For Personal & Private Use Only [ वज्जालग्ग में www.jainelibrary.org

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