Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 65
________________ सक भूकृ 1. दुक्खं (त्रिवि) = बड़ी कठिनाई से । कीरह (कीरह) व कर्म 3 / 1 अनि । कव्वं (कव्व) 1/1 । कव्वम्मि ( कव्व) 7 / 1। कए ( कम ) 7/1 अनि । पउंजणा (पउंजणा ) 1 / 1 संते (संत) 7 / 1 परंजमाने (पउंज ) वकृ 7 / 1 | सोयारा ( सोयार ) 1/2 | बुल्लहा ( दुल्लह) 1/2 वि । हुंति (हु) व 3 /2 श्रक । I | वि । व्याकरणिक विश्लेषण 2. गाहा ( गाहा ) 1 / 1 | अइ (रुद्र) व 3 / 1 ग्रक । प्रणाही ( मरणाहा ) 1 / 1 वि। सोसे (सीस) 7/1 । काऊरण ( काऊरण) संकृ अनि । वो (दो) 1 / 1 वि । वि ( अ ) = ही । हत्याओं ( हत्था ) 2 / 2 | सुकईहि ( सुकइ ) 3 / 2 | तुक्खरइया [ ( दुक्ख ) क्रिविन = बड़ी कठिनाई से - ( रन ) भूकृ 1 / 1] । सुहेण (त्रिवि) = आसानी से । सुक्खो ( मुक्ख ) 1 / 1 वि । विणाes (विरणास ) व 3 / 1 सक | 3. गाहाहि ( गाहा) 3/21 को (क) 1 / 1 सवि । न (घ ) = नहीं होरह (हीरइ) व कर्म 3 / 1 सक अनि । पियान (पिय) 6 / 2 वि । मितान' ( मित्त) 6 / 21 संभरइ (संभर) व 3 / 1 सक । मिज्ज (दूम) व कर्म 3 / 1सक | वि. (न) = तथा । मिएन (दूम) भूक 3 / 1 | सुयलेज ' (सुयरण) 3 / 1 रयलेज' ( यरण ) 3 / 1 वि । 1. स्मरण अर्थ की क्रियानों के साथ कर्म में षष्ठी होती है । 2. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के होता है । 36 ] Jain Education International स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग ( हेम प्राकृत व्याकरण 3 - 137 वृत्ति ) [ वज्जालग्ग में For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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