Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 68
________________ (सहाव) 1/1 | याणिमो (याण) व 1/2 सक। कस्स (क) 6/1 सवि । सारिच्छो (सारिच्छ) 1/1 वि। .. . 12. नेच्छसि (न+इच्छसि) । न (अ) = नहीं इच्छसि (इच्छ) व 2/1 सक। परावयारं [(पर+(प्रवयारं)] [(पर)-(अवयार) 2/1] । परोवयारं [(पर)+(उवयारं)] [(पर)-(उवयार) 2/1] । (म) = इसके विपरीत । निच्चमावहसि (निच्चं+आवहसि) निच्चं (अ) = सदा आवहसि (प्रावह) व 2/1 सक । अवराहेहि (प्रवराह) 3/2। कुप्पसि (कुप्प) व 2/1 सक। सुयण (सुयण) 8/1 | नमो (अ) = नमस्कार । तुह (तुम्ह) 4/1 स । सहावस्स (सहाव) 4/11 13. बोहिं (दो) 3/2 वि । चिय (प्र) =ही। पज्जतं (पज्जत्त) 1/1। बहुएहि (बहुअ) 3/2 वि । वि (अ) = भी। कि (किं) 1/1 सवि । गुलेहि (गुण) 3/2। सुयणस्स (सुयण) 6/1 । विज्बुप्फुरियं [(विज्जु)-(प्फुरिय) 2/1 वि] । रोसो (रोस) 1/1 । मित्ती (मित्ती) 1/11 पाहागरेह [(पाहाण)-(रेहा) 1/1 आगे संयुक्त अक्षर (न्व) के . आने से दीर्घ स्वर हस्व स्वर हुआ है] । व्व (म) = की तरह। 1. कभी कभी प्रथमा विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का . प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137 वृति) 14. वीणं (दीण) 2/1 । अग्भुखरिउ (मन्भुद्धर) हेकृ । पत्त' (पत्त) 7/1 _ वि.। सरणागए [(सरण)+(प्रागए)] [(सरण)-(प्रागन) भूक 7/1 अनि] । पियं (पिय) 2/1 वि । काउं' (काउं) हेकृ अनि । अवरसु (अवरद्ध) 7/21 वि (अ) = भी । खमि (खम) हेकृ । सुयणो (सुयण) 1/1। च्चिय (प्र) = ही । नवरि (प्र) = केवल । जाणेइ (जाण) व 3/1 सक। 1. 'समर्थ आदि का बोध कराने वाले शब्दों के साथ हेव का प्रयोग होता है। . . 2. कभी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) जीवन-मूल्य ] . [ 39 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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