Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 90
________________ 1 [(सुर)- (प्रसुर) 3/2] । सबलेहि (सयल) 3/2 वि । लच्छी ( लच्छी) 3 / 11 उबहि' ( उवहि ) मूलशब्द । मुबको (मुक्क) भूकृ 1 / 1 प्रनि । पेच्छह (पेच्छ) विधि 2/2 सक। गंभीरिमा ( गंभीरिमा ) 1 / 1 । तस्स (त) 6/1 स । 1. किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जाता है । (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) = निरंतर = 98. यहि (रमण ) 3 / 2 | निरंतरपुरिएहि [ (निरंतर) (पूर ) भूकृ 3 / 2 ] । रयणायरस्त ( रयरणायर) 6 / 11 न ( प्र ) = नहीं । हु ( प्र ) = भी। गब्बो ( गव्व) 1 / 1 | करिणो ( करि ) मुत्तालसंसए [ ( मुत्ताहल ) - ( संस ) मयविमला [ (मय ) - (विब्भला) 1 / 1 6/1 7 / 1] वि ] जीवन-मूल्य ] । Jain Education International वि ( अ ) = भी। | विट्ठी (दिट्ठि) 1 / 1 । 99. रयणाय रस्स ( रयणायर) 6 / 11 न ( अ ) = नहीं । हु अक । तुच्छिमा ( तुच्छिमा ) रयरोह ( रयरण ) 3 / 2 1 / 1 । निग्गएहि | तह वि (प्र) = । = होइ (हो) व 3 / 1 ( निग्गन) भूकृ 3 / 2 अनि तो भी । हु ( अ ) = किन्तु | चंदसरिच्छा [ ( चंद) - ( सरिच्छ) 1 / 2 वि ] । बिरला ( विरल ) 1 / 2 वि । रयणायरे [ ( रयणायर) 7 / 1 । रयणा ( रयण) 1 / 21 3 / 1] 100. जइ वि (प्र) = यद्यपि । हु ( प्र ) = ही । कालवसेणं [ ( काल ) - ( वस) ससी (ससि) 1 / 1 | समुद्दाउ ( समुद्द) 5 / 11 कह वि (ध) = किसी तरह । विच्छुडिओ ( विच्छुडिय) 1 / 1 वि तह वि (अ). = | आणंद (प्राणंद) (त) 6 / 1 स । पयासो ( पयास) 1 / 1 2 / 1 | कुणइ ( कुरण) व 3 / 1 । दूरे (प्र) = दूर । वि (श्र) = भी। For Personal & Private Use Only ( प्र ) = भी | [ 61 www.jainelibrary.org

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