Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 79
________________ [(विहल) वि-(अण)-(समुद्धरण) 1/1] । विहलुबरन [(विहल) +(उद्धरणेण)] [(विहल)वि-(उद्धरण) 3/1] । जसो (जस) 1/1। बसेन (जस) 3/1। मन (भण) विधि 2/1 सक। किं (कि) 1/1 सवि । न (भ) = नहीं । पज्जतं (पज्जत्त) भृकृ 1/1 अनि । 56. आत्ता (माढत्त) 1/2 वि । सप्पुरिसेहि (सप्पुरिस) 3/21 तुंगववसायविन्नहियरहि [ (तुग)-(ववसाय)-(दिन) वि-(हियम) 3/2)] । कम्जारंभा [ (कज्ज)+ (प्रारंभा) ] [(कज्ज)-(प्रारंभ) 1/2] | होहिति (हो) भवि 3/2। निष्फला (निष्फल) 1/2 वि । कह (अ)= किस तरह । चिरं कालं (क्रिवित्र) = दीर्घ काल तक । 57. विहवक्सए [(विहव)-(क्खन) 7/1] | वि (अ)=भी। वाणं (दाण) 1/1। माणं (माण) 1/1। बसणे (वसण) 7/1। धोरिमा (धीरिमा) 1/1। मरणे (मरण) 7/1। कज्जसए [(कज्ज)-(सत्र) 7/1]। प्रमोहो (अमोह) 1/1 वि। पसाहणं (पसाहण) 1/1। धीरपुरिसाणं [(धीर) वि-(पुरिस) 6/2]। 58. वारिद्दय (दारिद्द) 8/1 स्वार्थिक 'य' प्रत्यय । तुझ (तुम्ह) 6/1 स । गुणा (गुण) 1/2 1 गोविज्जंता (गोव) वक कर्म 1/21 वि (म) = भी। घोरपुरिसेहि [(धीर) वि-(पुरिस) 3/2] । पाहुणएसु (पाहुणप्र) 7/2 छणेसु (छण) 7/2। य' (अ)=ौर । वसणेसु (वसण) 7/21 पायग (पायड) 1/2। हुंति (हु) व 3/2 प्रक। 2. दो शब्दों को जोड़ने के लिए कभी कभी 'और' अर्थ का व्यक्त करने वाले अव्यय दो बार प्रयोग किए जाते हैं। 59. वारिद्दय (दारिद्द) 8/1 स्वार्थिक 'य' प्रत्यय । तुज्झ (तुम्ह) 4/1 स । नमो' (अ)= नमस्कार । जस्स (ज) 6/1 स । पसाएण (पसा) 3/1। एरिसी ( एरिस (पु)-एरिसी (स्त्री)) 1/1 वि। रिद्धी 1. 'नमो' के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। 50 ] [ वज्जालग्ग में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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