Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 86
________________ 83. जइ ( अ ) = यदि । नत्थि ( प्र ) = नहीं । गुणा ( गुरण) 1 / 21 ता (प्र) किं (कि) 1 / 1 सवि कुलेण (कुल) 3 / 1। गुणिणो (गुणी ) हु ( अ ) = भी। कब्जं ( कज्ज) 1 / 1 = तो। | 1 1 4 / 1 वि । न ( अ ) = नहीं । कुलमकलंकं [ ( कुलं) + (अकलंकं ) ] कुलं ' ( कुलं) 2 / 1 अकलंकं ' ( कलंक ) 2 / 1 वि । गुणवज्जियाण [ ( गुण) - ( वज्ज) भूकृ 6 / 2] rei (ror) 1 / 1 वि । चिय ( अ ) = निश्चय ही । कलंकं ( कलंक ) 1 / 1 । 1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137 ) 2. कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 84. गुणहीना [ ( गुण ) - ( हीण ) भूकृ 1 / 2 अनि ] | जे (ज) 1/2 सवि । पुरिसा ( पुरिस) 1/2 | कुलेण (कुल) 3 / 1 | गवं ( गव्व) 2 / 1 | वहंति ( वह) व 3 / 2 सक ते (त) 1 / 2। मूढा ( मूढ ) 1/2 वि । सुप्पो [ ( वंस) + (उप्पन्नो ) ] [ ( वंस) - ( उप्पन्न ) भूकृ 1 / 1 अनि ] । बि (प्र) = यद्यपि । धरण ( धणु ) 1 / 1 गुणरहिए ' [ ( गुण) - (रह) भूकृ 7 / 1] । नत्थि ( अ ) = नहीं । टंकारी ( टंकार ) 1 / 1 | 1. कभी-कभी तृतीया के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3 - 135 ) 85. जम्मंतरं [ ( जम्म) + (अंतरं ) ] [ ( जम्म ) - ( अंतर 1 / 1 ] । न ( अ ) = नहीं । गदयं (गरुय ) 1 / 1 वि पुरिसल्स' (पुरिस) 6/11 गुणगणाव्हणं [ ( गुण) + ( गण ) + ( प्रायहणं ) ] ( धारहण) 1 / 1 ] मुताहलं ( मुत्ताहल ) 1 / 1 [ ( गुण) - ( गण ) - हि (घ) ही हु = 1. कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया पर पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) जीवन-मूल्य ] Jain Education International For Personal & Private Use Only विभक्ति के स्थान [ 57 www.jainelibrary.org

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