Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 57
________________ 81. रायंगणम्मि परिसंठियस्स जह कुंजरस्स माहप्पं । विभसिहरम्मि न तहा ठाणेसु गुणा विसति ॥ 82. ठाणं न मुयइ धीरो ठक्कुर संघस्स वुट्ठवग्गस्स । ठतं पिबेद्द जुज्भ ठाणे ठाणे जसं लहइ || 83. जड़ नत्थि गुणा ता कि कुलेण गुरिणरणो कुलेण न हु कज्जं । कुलमकलंकं गुणवज्जियारण गरुयं चिय कलंकं ॥ 84. गुणहोरगा जे पुरिसा कुलेण गव्वं वहति ते मूढा । वसुप्पन्नो वि धणू गुणरहिए नत्थि टंकारो ॥ 85. जम्मंतरं न गरुयं गरुयं पुरिसस्स गुरणगरगारहणं । मुत्ताहलं हि गरुयं न हु गरुयं सिप्पिसंपुज्यं || 36. खरफरुसं सिप्पिउडं रयणं तं होइ जं प्रणग्धेयं । जाई कि व किज्जइ गुणेहि बोसा फुसिज्जति ॥ 28 ] Jain Education International For Personal & Private Use Only [ वज्जालग्ग में www.jainelibrary.org

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