Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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75. नहु कस्स वि देति षणं अन्नं तं पितह निवारंति ।
प्रत्या कि किविरणस्था सस्थावस्था सुयंति व्व ॥
76. निहणंति षणं धरणीयलम्मि इय जारिणऊन किविराजरणा ।
पायाले गंतव्वं ता गच्छउ प्रग्गठाणं पि।
77. करिणो हरिणहरवियारियस्स दीसंति मोतिया कुमे।
किविणारण नवरि मरणे पयः च्चिय हंति भंगरा ॥
78. देमि न कस्स वि जंप उद्दारजरणस्स विविहरयणाई ।
चाएण विणा वि नरो पुणो वि लच्छीइ पम्मुक्को ।
79. जीयं जलबिंदुसमं उप्पज्जइ जोव्वरण सह जराए। _ वियहा दियहेहि समा न हुंति किं निठ्ठरो लोगो ॥
80. विहडंति सुया विहति बंधवा विहडेह संचिसो अत्यो।
एक्कं नवरि न विहडइ नरस्स पुव्वक्कयं कम्मं ॥
26 ]
[ वज्जालग्ग में
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