Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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68. बेवि सपक्ला तह वे विषवलया के वि सरवरनिवासा।
तह विहु हंसबयाणं जाणिज्जइ अंतरं गत्यं ॥
69. एक्केण य पासपरिट्ठिएण हंसेण होइ जा सोहा
तं सरवरो न पावइ बहुएहि वि ढिकसत्यहि ॥
70. मारणससररहियारणं जह न सुहं होइ रायहंसाएं।
तह तस्स वि तेहि विरणा तीरच्छंगा न सोहंति ॥ 71. वच्चिहिसि तुमं पाविहिसि सरवरं रायहंस, किं चोज्नं ।
माणससरसारिक्खं पुहवि भमंतो न पाविहिसि ॥
72. सव्वायरेण रक्सह तं पुरिसं जत्थ जयसिरी वसइ ।
प्रत्यमिय चंदविवे ताराहि न कीरए जोहा॥
73. जइ चंदो कि बहुतारएहि बहुएहि किं च तेन विणा ।
अस्स पयासो लोए षवलेइ महामहीवळें ॥
74. चंदस्स खओ न. हु तारयाण रिद्धी वि तस्स नहु ताणं ।
गल्यारण चडणपडणं इयरा उरण निच्चपरिया य॥
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24 ]
[ वज्जालग्ग. में
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