Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 51
________________ 62. संकुयइ संकुयंते वियसड़ वियसंतयम्मि सूरम्मि । रोरकुडु वं पंकयलीलं समुब्वहइ ॥ सिसिरे 63. प्रोलग्गिश्रो सि धम्मम्मि होज्ज एव्हि नरिद बच्चामो । श्रालिहियकु जरस्स व तुह पहु दाणं चिय न विट्ठ ॥ 64. भग्गे वि बले बलिए वि साहरणे सामिए निरुच्छाहे । नियभुयविक्कमसारा थक्कंति कुलग्गया सुहडा ॥ · 65. वियलइ धरणं न माणं भिज्जइ अंगं न भिज्जइ पयावो । रूवं चलइ न फुरणं सिविणे वि मरणंसिसस्थाणं ॥ 66. हंसो सि महासरमंडरणो सि धवलो सि धवल कि तुम्झ । खलवायसारण मज्झे ता हंसय कत्थ पडियो सि ॥ 67. हंसो मसारणमज्भे कानो जइ वसई पंकयधरणम्मि । तह वि हु हंसो हंसो काश्रो काम्रो च्चिय वरानो ॥ 22 ] Jain Education International For Personal & Private Use Only [ वज्जाल‍ www.jainelibrary.org

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